भृगु सूत्र आधारित सूर्य का तृतीय भाव में फल
तृतीय भाव में सूर्य का फल
अनेक ग्रंथों में सूर्यादि सभी ग्रहों के विभिन्न स्थानों में फल बताएं गए हैं पिछले लेख में मैंने भृगु सूत्र आधारित सूर्य के प्रथम भाव व द्वितीय में फल को बताया था अतः उसी क्रम को आगे बढ़ाते हुए सूर्य के तृतीय भाव में फल को लिख रहा हूँ:-
भृगु सूत्र आधारित प्रथम भाव में सूर्य के फल को पढ़ने के लिए इस लिंक पर जाएं:-
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१. यदि कुंडली के तृतीय भाव में सूर्य हो तो व्यक्ति बुद्धिमान होता है किंतु ऐसे व्यक्तियों को अनुजों (छोटे भाइयों) का अभाव रहता है साथ ही बड़ा भाई तो होता है किंतु बड़े भाई के सुखों में त्रुटि रहती है और ऐसे व्यक्तियों को उम्र के ४, ५, ८ अथवा १२वें वर्ष में कुछ पीड़ा होती है।
२. यदि कुंडली के तृतीय भाव में सूर्य पाप ग्रह से युक्त होकर बैठा हो तो व्यक्ति क्रूर कर्मों को करने वाला होता है तथा उसके दो भ्राता होते हैं साथ ही ऐसा व्यक्ति पराक्रमी तथा लड़ाई-झगड़े से न घबराने वाला और कीर्तिमान व अपने द्वारा अर्जित धन का भोग करने वाला होता है।
३. यदि तृतीय भाव में सूर्य शुभ ग्रहों से युक्त हो तो व्यक्ति के सहोदर भाइयों की अच्छी उन्नति व वृद्धि होती है।
४. यदि तृतीय भाव में सूर्य हो और तृतीयेश/पराक्रमेश बली अवस्था में बैठा हो या तृतीय भाव में सूर्य स्वराशि स्थित हो तो व्यक्ति अत्यंत पराक्रमी, खुद के पराक्रम से संपूर्ण सुख भोगने वाला, उच्च पद पर आसीन होने वाला, राजा या उच्चाधिकारी द्वारा सम्मानित होता है तथा ऐसे व्यक्तियों के भाई दीर्घायु होते हैं।
५. यदि तृतीय भाव में सूर्य स्थित हो और तृतीयेश/पराक्रमेश पाप ग्रहों से युक्त व दृष्ट हों तो व्यक्ति आलस्य करने वाला व पाप कर्म करने वाला होता है तथा ऐसे व्यक्तियों के भाइयों का नाश होता है।
६. यदि तृतीय भाव में सूर्य स्थित हो और उस पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो व्यक्ति धनवान, भोगी तथा सुखी होता है।
भृगु सूत्र आधारित द्वितीय भाव में सूर्य के फल को पढ़ने के लिए इस लिंक पर जाएं:-
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जय श्री राम।
Astrologer:- Pooshark Jetly
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