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ग्रहों की नैसर्गिक मित्रता व शत्रुता:-

  ग्रहों को दो भागों में बाटा गया है पहला दैवीय दूसरा राक्षस। सूर्य, चन्द्र, मंगल और गुरु दैवीय राशियों के अंतर्गत आते हैं। शुक्र, शनि, राहु और केतु राक्षस राशियों के अंतर्गत आते हैं। जब भी कोई दैवीय ग्रह, राक्षस ग्रह के राशि मे आते हैं तो उनके शुभ फल में कमी आ जाती है ठीक उसी प्रकार जब कोई राक्षस ग्रह, दैवीय ग्रह की राशि में आते हैं तो उनके शुभ फल में कमी आती है। बुध इकलौता ऐसा ग्रह है जो जिस ग्रह की राशि पर बैठता है उसके आचरण को अपना कर अपने फल देता है मतलब बुध यदि असुर ग्रह के राशि में बैठा है तो असुर प्रवति अपनाकर फल देगा और अगर दैवीय ग्रह की राशि पर विराजमान है तो दैवीय प्रवति अपनाकर अपने फल देगा। बुध कभी भी चंद्र और गुरु से संबंध रखकर अच्छे फल नही देता लेकिन गुरु बुध का पिता होने के नाते बुध को शुभता प्रदान करता है किंतु बुध गुरु को अपना शत्रु मानता है। गुरु सबसे ज्यादा शुभ फल लग्न पर बैठ कर देता है क्योंकि लग्न पर बैठा गुरु पंचम, सप्तम और नवम भाव को देखता है। शुक्र हमेशा वाहरवें भाव मे सबसे ज्यादा शुभ फल देता है क्योंकि वाहरवां भाव विष्णु जी का पैर होता है जहां लक्ष्मी जी बैठकर विष्णु जी का पैर दबा रही होती हैं इसी कारण वाहरवें भाव को शैया सुख भी कहा जाता है। शुक्र सबसे ज्यादा खराब फल दूसरे और सातवें भाव मे देता है क्योंकि दोनों ही मारक स्थान होते हैं और शुक्र भोग-विलास का कारक होता है जिस कारण व्यक्ति केवल भोग-विलास के चक्कर मे पढ़कर अपने जीवन को खत्म कर देता है। Astrologer:- Pooshark Jetly Astrology Sutras (Astro Walk Of Hope) Mobile:- 9919367470