कुंडली मिलान के नियम, अष्टकूट मिलान व विभिन्न दोषों के परिहार
कुंडली मिलान के नियम, अष्टकूट मिलान व विभिन्न दोषों के परिहार
इस लेख को आरंभ करने के पूर्व मैं सर्वप्रथम अपने गुरु, अपने आराध्य व अपने इष्ट (श्री हनुमान जी और बाबा महादेव )के श्री चरणों में नमन करता हूँ, बहुत लोगों के मन में कुंडली मिलान को लेकर अनेक प्रश्न रहते हैं जिन्हें मैं अपने इस लेख के माध्यम से संतुष्ट करने का एक प्रयास कर रहा हूँ, हमारे धर्म शास्त्र में गर्भाधानादि (जन्म से मृत्यु पर्यन्त) षोडश संस्कारों में विवाह संस्कार सर्वश्रेष्ठ संस्कार माना गया है शास्त्र सम्मत विधिवत विवाह संपन्न होने पर जीवात्मा मनुष्य जीवन के सर्वोपरीय उद्देश्य (धर्म, अर्थ व काम) का यथावत पालन करते हुए मोक्ष को प्राप्त कर सकता है।
कुंडली मिलान के नियम
जीवनकाल चार आश्रमों में विभजित है यथा ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और सन्यास, इन चारों आश्रमों का मुख्य आधार "गृहस्थ" है, स्त्री को मुख्य रूप से धर्म, अर्थ, कामकी प्रदात्री मानने के साथ ही संतान सिद्धि का प्रमुख मानकर विवाह के लिए समय शुद्धि का विचार किया जाता है यथा:-
"भार्या त्रिवर्गकणां शुभशील युक्ता शीलं शुभम् भवति लगनवशेन तस्या:।"
"तस्माद्विवाहसमय: परिचिन्त्यते हि तान्नध्नतामुपगता: सुतशीलधर्मा:।।"
सृष्टि के आदिकाल से वसुंधरा पर अनेक महापुरुष ऋषि-महर्षि व विद्वान ज्योतिषाचार्यों व विज्ञान वेत्ताओं ने इस विषय पर गहन अध्यन चिंतन मनन कर के ग्रहादिकों के प्रभावादिका सही आकलन कर कुछ नियम निश्चित किए हैं यथा विद्याध्यन काल पूर्ण होने पर जब लड़के व लड़की की उम्र विवाह योग्य हो जाए तब माता-पिता को अपने कुल की परंपरानुसार लड़की के अनुरूप सुयोग्य वर को टीका (वाग्दान) करना चाहिए।
अष्टकूट मिलान
हमारे पूर्वजों ने दिव्य दृष्टि से विवाह के विषय में (जो एक धार्मिक संबंध है) पर गहन अध्यन किया है एक कन्या किसी दूसरे वर के साथ सर्वदा के लिए गृहणी बनने को जाती है इन दोनों के शारीरिक एवं मानसिक विभिन्नताओं पर आजन्म के लिए उन लोगों का सुख-दुःख निर्भर करता है इन शारीरिक व मानसिक गुण-दोषों को और इसके तारतम्य को जानने के लिए "वर्ण", "वश्य", "योनि", "गण", "तारा", "नाड़ी", "ग्रहमैत्री" व "भकूट" कहा गया है।
विभिन्न दोषों के परिहार