रोग भाव में स्थित शनि का फल
षष्ठ भाव में स्थित शनि का फल
कुंडली के
छठे भाव से हम
रोग, शत्रु, ऋण, संघर्ष, मामा का विचार करते हैं जहाँ बैठा
शनि इन सभी को प्रवाभित करता है ग्रंथकारों के अनुसार यदि
शनि छठे भाव में स्थित हो तो शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है, अचानक धन प्राप्त होने के योग बनते हैं,
छठे भाव में स्थित
शनि दामपत्य जीवन के लिए भी अच्छा होता है कुल मिलाकर लगभग सभी ग्रंथकारों ने
छठे भाव में
शनि को शुभ बताया है,
मानसागर के अनुसार यदि
नीच राशि का
शनि छठे भाव में स्थित हो तो वह उसके कुल के लिए अच्छा नही होता अर्थात ऐसे व्यक्तियों का कुल सीमित रह जाता है, मेरे अनुभव के अनुसार यदि
शनि छठे भाव में स्थित हो तो व्यक्ति को कोई ऐसी बीमारी अवश्य रहती है जो उनके वंश में पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही हो जैसे रक्त जनित कोई विकार, डाइबिटीज, ब्लडप्रेशर आदि-आदि, यदि
शनि छठे भाव में स्थित हो तो ऐसे व्यक्तियों के जीवन के शुरुवात में काफी उतार-चढ़ाव रहता है तथा अत्यधिक परिश्रम करने पर बड़ी सफलता प्राप्त होती है और जीवन के उत्तरार्ध में ऐसे व्यक्तियों के पास अच्छा धन रहता है,
छठे भाव में
स्थित शनि की तीसरी दृष्टि
अष्टम भाव में होती है आयुष्य कारक ग्रह
शनि की आयु भाव में दृष्टि आयु की वृद्धि करती है कहने का आशय यह है कि ऐसे व्यक्ति दीर्घायु होते है किंतु यदि
शनि अष्टम भाव में
मेष, वृश्चिक, कर्क, सिंह राशि को देखते हों तो आयु सुख में कमी रहती है,
छठे भाव में स्थित
शनि की सप्तम दृष्टि
द्वादश भाव में होती है द्वादश भाव विदेश यात्रा का भाव होता है जहाँ
शनि की दृष्टि विदेश यात्रा के योग बनाती है, ऐसे व्यक्ति धन कम खर्च करते हैं अर्थात ऐसे व्यक्ति कंजूस होते हैं कहने का आशय यह है कि द्वादश भाव में
शनि खर्चों/व्यय में कमी करता है किंतु यही
शनि यदि द्वादश भाव या छठे भाव का स्वामी होकर
छठे भाव में बैठा हो तो ऐसा व्यक्ति परिवार, शत्रुओं, यात्राओं, दवाईयों पर धन व्यय कराता है,
छठे भाव में स्थित
शनि की दसवीं दृष्टि तीसरे भाव में पड़ती है जो यह दर्शाता है कि ऐसे व्यक्ति पराक्रमी होते हैं व उन्नति प्राप्त करने हेतु निरंतर प्रयत्नशील रहते हैं और खुद की मेहनत से भाग्य की वृद्धि व उन्नति को प्राप्त करते हैं।
Saturn in sixth house
यदि
उच्च राशि का
शनि छठे भाव में हो जो कि
वृषभ लग्न की कुंडली में ही संभव है तो ऐसे व्यक्तियों को भाग्योदय हेतु कड़ा संघर्ष करना पड़ता है तथा ऐसे व्यक्तियों के प्रतियोगी परीक्षाओं में सफल होने की संभावना और अधिक हो जाती है साथ ही ऐसे व्यक्ति शत्रुओं पर विजय प्राप्त करते हैं
ऋषि कश्यप के अनुसार यदि
उच्च राशि का
शनि छठे भाव में हो तो ऐसे व्यक्तियों के शत्रु अधिक होते हैं, यदि
उच्च नवांश का
शनि छठे भाव में स्थित हो तो ऐसे व्यक्ति विरोधियों पर विजय प्राप्त करते हैं।
यदि शुभ वर्ग का शनि छठे भाव में स्थित हो तो ऐसे व्यक्ति विनम्र स्वभाव वाले होते हैं तथा यदि यही शनि लग्नेश को देखे तो ऐसे व्यक्तियों का स्वभाव अति विनम्र होता है, यदि पाप वर्ग का शनि छठे भाव में हो तो ऐसे व्यक्तियों की कृषि कर्म में रुचि होती है कहने का आशय यह है कि ऐसे व्यक्ति भूमि के नीचे से उत्पन्न होने वाली चीजों जैसे कृषि, तेल, खनिज से जुड़े कार्यों में अधिक रुचि रखते हैं साथ ही बिजली, लौह, वाहन से जुड़ा कार्य भी करते हैं।
यदि
नीच राशि का
शनि छठे भाव में जो कि
वृश्चिक लग्न की कुंडली में ही संभव है तो ऐसे व्यक्तियों की परिवार के सदस्यों से बहुत कम बनती है
ऋषि कश्यप के अनुसार ऐसे व्यक्ति खल स्वभाव के होते हैं कहने का आशय यह है कि ऐसे व्यक्ति नकारात्मक बातों को पहले सोचते हैं साथ ही ऐसे व्यक्तियों में बदले की भावना भी रहती है, यदि
नीच नवांश का
शनि छठे भाव में हो तो ऐसे व्यक्ति क्रूर स्वभाव के होते हैं तथा इनकी सबके साथ नही बनती है।
रोग भाव में स्थित शनि का फल
यदि
मित्र राशि का
शनि छठे भाव में हो तो ऐसे व्यक्ति
वर्णसंकर होते हैं अब प्रश्न यह उठता है कि
वर्णसंकर क्या होता है, जब दो अलग-अलग कुल या जाति के व्यक्ति विवाह करते हैं तो उनसे जो संतान उत्पन्न होती है उसे
वर्णसंकर कहा जाता है आज के समय में यह काफी प्रचलित भी है क्योंकि आज के समय में यह देखने में आता है कि एक वर्ण का व्यक्ति दूसरे वर्ण के व्यक्ति से प्रेम विवाह करते हैं इसको इस तरह से भी समझ सकते हैं कि जब दो अलग कम्युनिटी के लोग विवाह करते हैं तो उनकी संतान
वर्णसंकर होती है, यदि
मित्र नवांश का
शनि छठे भाव में हो तो ऐसे व्यक्ति प्रायः व्यापारी होते हैं कहने का आशय यह है कि ऐसे व्यक्तियों की व्यापार में अधिक रुचि होती है और यदि ऐसे व्यक्ति नौकर भी करते हैं तो उनका कार्य सेल्स व मार्केटिंग से जुड़ा होता है।
यदि
वर्गोत्तम शनि छठे भाव में हो तो ऐसे व्यक्ति धार्मिक स्वभाव वाले होते हैं कहने का आशय यह है कि इनकी धर्म-कर्म में अच्छी रुचि होती है तथा ऐसे व्यक्ति धर्म से जुड़े कार्य करना अधिक पसंद करते हैं, यदि
शत्रु नवांश का
शनि छठे भाव में हो तो ऐसे व्यक्तियों की संतान कठोर स्वभाव वाली होती है कहने का आशय यह है कि ऐसे व्यक्तियों की पहली संतान की वाणी कटु होती है।
यदि
स्वराशि शनि छठे भाव में हो जो कि
सिंह लग्न व कन्या लग्न की कुंडली में ही संभव है तो ऐसा व्यक्ति हास्य विनोद करने वाला तथा अभिनेता होता है तथा यह संभावना
कन्या लग्न की कुंडली में अधिक होती है, यदि
सिंह लग्न की कुंडली में
शनि छठे भाव में
स्वराशि स्थित हो तो ऐसे व्यक्तियों के दामपत्य जीवन में उतार-चढ़ाव बना रहता है तथा इन्हें कोई न कोई रोग प्रायः लगा ही रहता है साथ ही यदि
सिंह लग्न की कुंडली में
स्वराशि शनि पीड़ित हो तो व्यक्ति के रोगी होने की संभावना और अधिक हो जाती है वहीं यदि
कन्या लग्न की कुंडली में स्वराशि
शनि छठे भाव में स्थित हो तो ऐसे व्यक्ति प्रतियोगी परीक्षा में सफल होकर उन्नति को प्राप्त करते हैं कहने का आशय यह है कि इनके प्रतियोगी परीक्षाओं में सफल होने की संभावना अधिक हो जाती है तथा किसी प्रतियोगिता में सफल होकर उन्नति को प्राप्त करते हैं।
जय श्री राम।
Astrologer:- Pooshark Jetly
Astrology Sutras (Astro Walk Of Hope)
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