राहु एक परिचय व राहु के कारकतत्व
राहु एक परिचय व राहु के कारकतत्व
शनिवत राहु अर्थात राहु सरीखा होने से दुःख-स्वरूप, सेना, चंडाल, जाति, रात्रि बली, कृष्ण पक्ष व दक्षिणायन में बली तथा वल्मीक (दीमक वाला पिंड) में वास करने वाला ग्रह होता है, अनेक पैबंद या अनेक रंग की कथली इसका वस्त्र तथा सीसा इसका धातु है, मतांतर से राहु वृषभ के २०° पर राहु परमोच्च तथा मिथुन में ०° से २०° तक मूल त्रिकोण में होता है, राहु की उच्च राशि वृषभ, मूल त्रिकोण राशि मिथुन व स्वराशि कन्या होती है, कूड़ा बटोरने वाले या कबाड़ी भी राहु से प्रभावित माने जाते हैं।
सत्यजातकम् के अनुसार राहु कृष्ण वर्ण, दीर्घ काय तथा कुष्ठ या त्वचा रोगों से पीड़ित होने के साथ-साथ नास्तिक या विधर्मी भी है, परनिंदा व पाखंड इसका स्वभाव है कहने का तात्पर्य यह है माया से सभी को भ्रमित करना ही राहु का स्वभाव है, राहु की दिशा दक्षिण पश्चिम है, बृहत्त्पराशर होराशास्त्र के अनुसार गुरु, शुक्र व शनि इत्यादि ग्रह राहु के मित्र, मंगल व बुध सम अर्थात न मित्र और न ही शत्रु और सूर्य व चंद्र इत्यादि ग्रह राहु के शत्रु होते हैं।
फलदीपिका के अनुसार "सर्पेणैव पितामहं तु शिखिना मातामहं चिंतयेत्" अर्थात राहु दादा, नानी, रेंगने वाले सर्प सरीखे जीव, बन्धन, नीचजन से मैत्री, सत्ता अधिकार, चोरी, काला जादू, साहस-शौर्य तथा मुसलमानों का कारक है, हफ्ता वसूलने वाले कर्मचारी, उपद्रवी या उत्पाती गुंडे-मवालियों को भी राहु से नियंत्रित माना गया है तथा राहु के रोगों में मिर्गी, चेचक, फाँसी से आत्महत्या, भुखमरी, प्रेत बाधा, अपच, कुष्ठ, भूख मर जाना, वमन या उल्टियाँ, क्षय, विष संक्रमण, भय, पागलपन या पक्षघात अथवा स्नायु तंत्र की दुर्बलता को शामिल किया जाता है।