रुद्राभिषेक करने का फल
रुद्राभिषेक करने का फल
जन्म कुंडली में ग्रहों से संबंधित दोषों से मुक्ति पाने का यह सर्वश्रेष्ठ अवसर है ईशान, ईश्वर, शिव, रुद्र, शंकर, महादेव आदि सभी ब्रह्म के ही पर्यायवाची शब्द हैं, ब्रह्म का विग्रह रूप शिव है तथा शिव की शक्ति शिवा है इसमें सतोगुण जगत पालन विष्णु हैं और रजोगुण सृष्टिकर्ता ब्रह्मा हैं, श्वास वेद, सूर्य-चंद्र नेत्र, तीनों लोक और चौदह भुवन इनके वक्षस्थल हैं जिनके विशाल जटाओं में सभी नदियों, पर्वतों और तीर्थों का वास है जहाँ सृष्टि के सभी ऋषि, मुनि, योगी आदि तपस्यागत रहते हैं, वेद ब्रह्मा के विग्रह के रूप अपौरुकेय, अनादि अजन्मा, ईश्वर शिव के श्वास से विनिर्गत हुए हैं, इसलिए वेद मंत्रों के द्वारा शिव का पूजन-अर्चन, अभिषेक, जप, यज्ञ आदि कर के प्राणी इनकी कृपा सहजता से प्राप्त कर लेता है।
[video width="640" height="352" mp4="https://astrologysutras.com/wp-content/uploads/2021/05/मृत्युंजय-महादेव-पर-काशी-ब्राह्मण-द्वारा-.mp4"][/video]
रुद्राभिषेक से लाभ
श्री महारुद्र जी का अभिषेक स्वम् के द्वारा करने या वेदपाठी विद्वानों द्वारा करवाने के बाद प्राणी को फिर किसी भी पूजा की आवश्यकता नही रहती है "शिव महापुराण" के अनुसार, वेदों का सारत्व "रुष्ट्राध्यायी" है, जिसमें ८ अध्यायों में १७६ मंत्र है, इन मंत्रों द्वारा त्रिगुण स्वरूपा रुद्र का पूजन अभिषेक किया जाता है, वेदों का सार है रुद्राष्टध्यायी जिसके प्रथम अध्याय के "शिव संकल्प सूत्र मंत्रों" से "श्री गणेश" का स्तवन किया गया है, द्वितीय अध्याय "पुरुष सूक्त" में "विष्णु जी" का स्तवन है, तृतीय अध्याय से "देवराज इंद्र" और चतुर्थ अध्याय में "सूर्य" का स्तवन किया जाता है, पंचम अध्याय स्वम् "रुद्र" रूप है इस अध्याय को "शतरुद्रीय" भी कहा जाता है, षष्ठ अध्याय में "शिव" के मस्तक पर विराजमान "सोम अर्थात चंद्र" का स्तवन है, इसी प्रकार सप्तम अध्याय में "मरुथ" और अष्टम अध्याय में "अग्नि देव" का स्तवन किया गया है, इसके साथ ही अन्य सभी देवी-देवताओं के स्तवन भी इन्ही पाठ मंत्रों में समाहित है।
[video width="640" height="352" mp4="https://astrologysutras.com/wp-content/uploads/2021/05/रुद्राभिषेक.mp4"][/video]
मनोकामनेश्वर महादेव
प्रति मास कृष्ण पक्षीय निशीथ काल व्यापिनी चतुर्दशी के दिन "मासिक शिवरात्रि व्रत" किया जाता है, समाज में फाल्गुन तथा श्रावण मास में पूजा विशेष प्रचलित है, "ईशान संहिता" के अनुसार फाल्गुन मास में ज्योतिर्लिंग का प्रादुर्भाव हुआ था इसलिए उसे "महाशिवरात्रि" के नाम से जाना जाता है, जनश्रुतियों के अनुसार श्रवण मास में शिव जी ने संसार की रक्षा हेतु विषपान किया था और विष की विकलता में इधर-उधर भागने लगे तब सभी ने विष की गर्मी से राहत दिलाने हेतु शिव जी का गंगाजल से रुद्राभिषेक किया था तभी से गंगाजल द्वारा रुद्राभिषेक की परंपरा शुरू हुई थी, गंगाजल से शिव अभिषेक आराधना अत्यंत उत्तम माना गया है, गंगाजल के अतिरिक्त रत्नोंदक, इच्छु रस (गन्ने का रस), दुग्ध, पंचामृत (दुग्ध, दहीं, घी, शहद, शकर) आदि अनेक द्रव्यों से किया जाता है।