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श्रीमद्देवीभागवत महापुराण के अनुसार बुध के जन्म की कथा

श्रीमद्देवीभागवत महापुराण के अनुसार बुध के जन्म की कथा

  बुध के जन्म की कथा बुध के जन्म की कथा   श्रीमद्देवीभागवत महापुराण के प्रथम स्कंध के ग्याहरवें अध्याय में बुध के जन्म की सुंदर कथा मिलती है जिन्हें ४ भाग में प्रकाशित करूँगा तो चलिए जानते हैं कि श्रीमद्देवीभागवत महापुराण के अनुसार बुध के जन्म की क्या कथा है:-  

ऋषय ऊचु:

कोऽसौ पुरुरवा राजा कोर्वशी देवकन्याका। कथं कष्टं च सम्प्राप्तं तेन राज्ञा महात्मना।। सर्वं कथानकं ब्रूहि लोमहर्षणजाधुना। श्रोतुकामा वयं सर्वे त्वन्मुखाब्जच्युतं रसम्।। अमृतादपि मिष्टा ते वाणी सूत रसात्मिका। न तृप्यामो वयं सर्वे सुधया च यथामरा:।।

  अर्थात ऋषिगण बोले-- हे सूत जी! वे राजा पुरुरवा कौन थे तथा वह देवकन्या उर्वशी कौन थी? उस मनस्वी राजा ने किस प्रकार संकट प्राप्त किया? हे लोमहर्षणतनय! आप इस समय पूरा कथानक विस्तारपूर्वक कहें हम सभी लोग आपके मुखारविंद से निःसृत रसमयी वाणी को सुनने के इच्छुक हैं, हे सूत जी! आपकी वाणी अमृत से भी बढ़कर मधुर एवं रसमयी है, जिस प्रकार देवगण अमृत पान से कभी तृप्त नही होते ठीक उसी प्रकार आपके कथा श्रवण से हम तृप्त नही होते।  

सूत उवाच

श्रृणुध्वं मुनयः सर्वे कथां दिव्यां मनोरमाम्। वक्ष्याम्यहं यथाबुद्धया श्रुतां व्यावरोत्तमात्।। गुरोस्तु दयिता भार्या तारा नामेति विश्रुता। रूपयौवनयुक्ता सा चार्वङ्गी मदविह्वला।। गतैकदा विधोर्धाम यजमानस्य भामिनि। दृष्टा च शशिनात्यर्थं रूपयौवनशालिनी।। कामातुरस्तदा जात: शशी शशिमुखीं प्रति। सापि वीक्ष्य विधुं कामं जाता मदनपीड़िता।।

अर्थात सूत जी बोले-- हे मुनियों! अब आप लोग उस दिव्य तथा मनोहर कथा को सुनिए, जिसे मैंने परम श्रेष्ठ व्यासा जी के मुख से सुना है, मैं उसे अपनी बुद्धि के अनुसार कहूँगा।   सुर गुरु बृहस्पति की पत्नी का नाम "तारा" था, वह रूप-यौवन से संपन्न तथा सुंदर अंगों वाली थी एक बार वह सुंदरी अपने यजमान चंद्रमा के घर गईं उस रूप तथा यौवन से संपन्न चंद्रमुखी कामिनी को देखते ही चंद्रमा उस पर आसक्त हो गए तथा देवी तारा भी चंद्रमा को देखकर आसक्त हो गईं इस प्रकार दोनों तारा व चंद्रमा एक-दूसरे को देखकर प्रेमविभोर हो गए, ये दोनों प्रेमोन्मत्त एक-दूसरे को चाहने की इच्छा से युक्त हो विहार करने लगे इस प्रकार उनके कुछ दिन व्यतीत हुए तब बृहस्पति ने देवी तारा को घर लाने के लिए अपना एक शिष्य भेजा परंतु वह न आ सकी, जब चंद्रमा ने बृहस्पति के शिष्य को कई बार लौटाया तो बृहस्पति क्रोधित होकर चंद्रमा के पास स्वम् गए और चंद्रमा के घर जाकर उदार चित्त बृहस्पति ने अभिमान के साथ मुस्कुराते हुए उस चंद्रमा से कहा:-  

गत्वा सोमगृहं तत्र वाचस्पतिरुदारधी:। उवाच शशिनं क्रुद्ध: स्मयमानं मदान्वितम्।। किं कृतं किल शीतांशो कर्म धर्मविगर्हितम्। रक्षिता मम भार्येयं सुन्दरी केन हेतुना।।

  अर्थात हे चंद्रमा! तुमने यह धर्मविरुद्ध कार्य क्यों किया और मेरी इस परम सुंदरी पत्नी को अपने घर में क्यों रख लिया? हे देव! मैं तुम्हारा गुरु हूँ और तुम मेरे यजमान हो तब हे मूर्ख! तुमने गुरु पत्नी को अपने घर में क्यों रख लिया? ब्रह्म हत्या करने वाला, सुवर्ण चुराने वाला, मदिरापान करने वाला, गुरूपत्नीगामी तथा पाँचवा इन पापियों के साथ संसर्ग रखने वाला-- ये "महापातकी" है, तुम महापापी, दुराचारी एवं अत्यंत निन्दनीय हो यदि तुमने मेरी पत्नी के साथ अनाचर किया है तो तुम देवलोक में रहने योग्य नही हो, हे दुष्टात्मन्! असितापांगी मेरी इस पत्नी को छोड़ दो जिससे मैं इसे अपने घर ले जायूँ अन्यथा गुरु पत्नी का अपहरण करने वाले तुझको मैं श्राप दे दूँगा, इस प्रकार बोलते हुए स्त्री विरह से कातर तथा क्रोधाकुल देव गुरु बृहस्पति से रोहिणी पति चंद्रमा ने कहा:-  

शेष अगले भाग:-२ में......

  जय श्री राम।   Astrologer:- Pooshark Jetly Astrology Sutras (Astro Walk Of Hope) Mobile:- 9919367470, 7007245896 Email:- pooshark@astrologysutras.com