दूसरे भाव में बैठे शनि का फल
दूसरे भाव में स्थित शनि का फल
कुंडली का
दूसरा भाव
वाणी, नेत्र, चेहरा, धन, परिवार/कुटुंब का भाव होता है ऐसी स्थिति में यदि
शनि जैसा अलगाववादी ग्रह
दूसरे भाव में बैठता है तो यह दर्शाता है कि ऐसे व्यक्ति की वाणी में सत्यता होगी और यदि
शनि यदि
अग्नि तत्व की राशि में स्थित हो तथा
मंगल द्वारा देखा जाता हो तो ऐसी स्थिति में उस व्यक्ति की बोली हुई सत्य बात लोगों को कटु लगती है क्योंकि ऐसे व्यक्ति बोलते समय यह नही सोचते कि मेरे बोले गए वाक्य अर्थात शब्द का दूसरे लोगों पर क्या प्रभाव पड़ेगा, यदि आर्थिक स्थिति के बारे में बात करें तो दूसरे भाव पर बैठा
शनि व्यक्ति को खुद की दरिद्रता से लड़ने पर मजबूर कर देता है कहने का आशय यह है कि
दूसरा भाव धन का भाव है और दूसरे भाव पर बैठे शनि की दसवीं दृष्टि एकादश भाव पर जाती है जो कि आमदनी का भाव है अर्थात धन के दोनों भाव
शनि के प्रभाव में आ जाते हैं और
शनि का दूसरा नाम ही मंद है अर्थात ऐसे व्यक्ति जीवन की शुरुवात में कड़ा संघर्ष व उत्तरार्ध में अच्छी उन्नति करते हैं क्योंकि दूसरे भाव में बैठा
शनि संकुचित मात्रा में धन देता है कहने का मतलब कि दूसरे भाव में बैठा
शनि आपको उतना ही धन देता है जिससे आपका कार्य चलता रहे, दूसरे भाव पर बैठा
शनि तकनीकि क्षेत्र से भी आमदनी कराता है।
दूसरे भाव में शनि
यदि परिवार के लिए बात की जाए तो
फलदीपिका में लिखा हुआ है कि
दूसरे भाव में बैठा शनि बचपन में दुःखी रखता है किंतु आगे का जीवन अच्छा होता है मेरा ऐसा अनुभव है कि यदि दूसरे भाव में
शनि हो तो ऐसे व्यक्ति घर से दूर जाकर धनार्जन करते हैं कहने का आशय यह है कि ऐसे व्यक्ति बचपन में कड़ा संघर्ष करते हैं और जन्मस्थान या घर से दूर रहकर धनार्जन करते हैं साथ ही ऐसे व्यक्ति घर के निर्णयों में भाग नही ले पाते हैं कारण
शनि दासता देता है साथ ही ऐसे व्यक्ति उस परिवार में रहते हैं जहाँ सदस्य कम हों अर्थात ऐसे व्यक्तियों के परिवार के सदस्यों की संख्या सीमित होती है, यदि दूसरे भाव में
शनि पीड़ित अवस्था में हो तो अचानक धन हानि के योग बनते हैं, दूसरे भाव से नेत्रों का भी विचार किया है अतः दूसरे भाव में स्थित
शनि नेत्र ज्योति को मंद करता है और यदि यही
शनि पीड़ित अवस्था में हो तो नेत्रों की सर्जरी के भी योग बनते हैं।
यदि
उच्च राशि का
शनि दूसरे भाव में हो जो कि कन्या लग्न की कुंडली में ही संभव है तो ऐसा व्यक्ति आर्थिक स्थिति के मामले में भाग्यशाली होता है तथा बौद्धिक शक्ति द्वारा अच्छा धन अर्जित करता है साथ ही
ऋषि कश्यप का मत है कि ऐसा व्यक्ति कुकर्म द्वारा धनार्जन करता है, यदि
उच्च नवांश का
शनि दूसरे भाव में तो ऐसा व्यक्ति जोखिम भरे कार्यों से धनार्जन करता है
ऋषि कश्यप ने भी यही कहा है कि ऐसा व्यक्ति कष्टपूर्वक कर्मों द्वारा धनार्जन करता है कहने का आशय यह है कि ऐसे व्यक्ति उन कार्यों द्वारा धनार्जन करते हैं जिस कार्य को करने में उनकी दिलचस्पी न हो या जोखिम हो, यदि
शुभ वर्ग का
शनि दूसरे भाव में तो ऐसे व्यक्ति व्यसनों से धन लाभ करते हैं कहने का आशय यह है कि आप कोई ऐसा कार्य करते हैं जिससे दूसरों को उस चीज की आदत लग जाती है, यदि
नीच राशि का
शनि दूसरे भाव में हो जो कि मीन लग्न की कुंडली में ही संभव है तो ऐसे व्यक्ति धन संचय नही कर पाते हैं
ऋषि कश्यप के अनुसार ऐसे व्यक्ति दुःख देकर धनार्जन करते हैं कहने का आशय यह है कि ऐसे व्यक्ति कोई ऐसा कार्य करते हैं जिससे दूसरों को पीड़ा पहुँचे।
शनि ग्रह
यदि
नीच नवांश का
शनि दूसरे भाव में हो तो ऐसे व्यक्ति निम्न वर्ग से धन की प्राप्ति करते हैं कहने का आशय यह है कि ऐसे व्यक्ति निम्न वर्ग के लोगों जो कि आर्थिक रूप से समृद्ध नही हैं उनके द्वारा या उनसे धनार्जन करते हैं, यदि
पाप वर्ग या शत्रु राशि का
शनि दूसरे भाव में हो तो ऐसे व्यक्ति पाप कर्मों द्वारा धनार्जन करते हैं, यदि
मित्र राशि का
शनि दूसरे भाव में स्थित हो तो ऐसे व्यक्ति अस्थि आदि अर्थात फिजूल के वस्तुओं द्वारा धनार्जन करते हैं कहने का आशय यह है कि ऐसे व्यक्ति ऐसे कार्य
(जैसे कबाड़ का काम या ऐसी वस्तु का विक्रय जो उनके काम की न हो किन्तु वही वस्तु दूसरे के काम की हो) कर के धनार्जन करते हैं, यदि
मित्र नवांश का
शनि दूसरे भाव में हो तो ऐसे व्यक्ति मिट्टी से जुड़े कार्य उदहारण खेती, खनिज, पेट्रोलियम से जुड़े कार्य के द्वारा धनार्जन करते हैं, यदि
वर्गोत्तम स्थिति का
शनि दूसरे भाव में स्थित हो तो ऐसे व्यक्ति जलीय पदार्थों द्वारा धनार्जन करते हैं, यदि
शत्रु नवांश का
शनि दूसरे भाव में हो तो ऐसे व्यक्ति नौकरी से धनार्जन करते हैं।
यदि
स्वराशि शनि दूसरे भाव में स्थित हो जो कि धनु लग्न या मकर लग्न की कुंडली में ही संभव है तो ऐसे व्यक्ति ठग कर धनार्जन करते हैं कहने का आशय यह है कि ऐसे व्यक्ति दूसरों को मूर्ख बनाकर धनार्जन करते हैं उदाहरण के तौर पर
मार्केटिंग सबसे अच्छा है क्योंकि
मार्केटिंग से जुड़ा व्यक्ति अपना कार्य निकालने हेतु हर तरह की विधि अपनाता है व दूसरों को मूर्ख बनाकर धन लाभ करता है, धनु लग्न की कुंडली में दूसरे भाव में स्थित
शनि अपने खुद के प्रयासों से धनार्जन कराता है और यदि मकर लग्न की कुंडली में दूसरे भाव में
शनि स्थित है तो ऐसे व्यक्ति अच्छा धनार्जन करने के साथ-साथ अच्छा खर्च भी करते हैं किंतु यहाँ भी उनका धन फिजूल के खर्चों में व्यय नही होता क्योंकि दूसरे भाव में स्थित
शनि व्यक्ति को थोड़ा कंजूस बनाता है।
जय श्री राम।
Astrologer:- Pooshark Jetly
Astrology Sutras (Astro Walk Of Hope)
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