हनुमान जी की उपासना कब करनी चाहिए से जुड़े कुछ तथ्य
"प्रात लेइ जो नाम हमारा। तेहि दिन न मिले अहारा।।"
परंतु इसका भावार्थ लेना चाहिए, यहाँ 'हमारा' शब्द का संबंध ऊपर की चौपाई के 'कपिकुल' अर्थात वानर योनि से है न कि अपने शरीर (श्री हनुमान विग्रह) से है वहाँ हनुमान जी कहते हैं-----"कहहु कवन मैं परम कुलीना। कपि चंचल सबहीं बिधि हीना।।"
अर्थात विभीषण जी! आप अपने को राक्षस कुल का मानकर भय न करें बताइए, मैं ही कौन से बड़े श्रेष्ठ कुल का हूँ, वानर योनि तो चंचल और पशु होने के कारण से सभी प्रकार से हीन है हमारे कुल (वानर) का अगर कोई प्रातःकाल नाम ले ले तो उस दिन उसे आहार का योग्य ही समझा जाता है।"अस मैं अधम सखा सुनु मोहू पर रघुबीर।"
"किन्हीं कृपा सुमिरि गन भरे बिलोचन नीर।।"
भावार्थ:- ऐसे अधम कुल का मैं हूँ, किंतु सखा! सुनिए, मुझ पर भी श्री राम जी ने कृपा की है। इस विरद को स्मरण कर कहते-कहते हनुमान जी के नेत्रों से आँसू भर आए अतः 'हमारा' शब्द का भाव यह है कि कुल तो हमारा ऐसा नीच है कि 'वानर' शब्द का ही प्रातः मुख से निकलना अच्छा नही माना जाता परंतु उसी योनि में उत्पन्न मैं जब प्रभु का कृपा पात्र बना लिया गया तब तो----"राम कीन्ह आपन जब ही तें। भयउँ भुवन भूषण तबहीं तें।।"
मेरे हनुमान, महावीर, बजरंगी, पवनकुमार आदि नाम प्रातः स्मरणीय हो गए इसका प्रमाण इस प्रकार है--- पोस्ट की लंबाई को ध्यान रखते हुए इसका प्रमाण अगली पोस्ट में प्रकाशित करूँगा। जय श्री राम। Astrologer:- Pooshark Jetly Astrology Sutras (Astro Walk Of Hope) Mobile:- 9919367470