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लग्न कुंडली के द्वादश भाव में सूर्य का फल--Astrology Sutras

लग्न कुंडली के द्वादश भाव में सूर्य का फल--Astrology Sutras

  लग्न कुंडली के द्वादश भाव में सूर्य का फल लग्न कुंडली के द्वादश भाव में सूर्य का फल   यदि लग्न कुंडली के द्वादश भाव में सूर्य हो तो ग्रंथकारों का मत है कि ऐसे व्यक्ति अत्यधिक धन खर्च करने वाले, पिता से विरोध रखने वाले, विरुद्ध बुद्धि, जन्म स्थान से बाहर रहने वाले, पर स्त्रीगामी, नेत्र रोगी एवं देवताओं के भक्त होते हैं तथा इन्हें २६ वें  वर्ष में कोई रोग व ३८ वें वर्ष में अर्थ की हानि होती है, यदि लग्न कुंडली के द्वादश भाव में सूर्य हो और द्वादश स्थान का स्वामी बलवान ग्रह से युत हो तो ऐसे व्यक्ति देवताओं की सिद्धि प्राप्त करने वाले और अनेक प्रकार के सुख को प्राप्त करने वाले होते हैं किंतु यदि सूर्य के साथ द्वादश भाव में पाप ग्रह बैठे हों तो व्यक्ति बुरे कार्यों में धन व्यय करने वाले होते हैं तथा इनको शैय्या सुख कुछ वैमनस्यता के साथ मिलता है साथ ही यदि लग्न कुंडली के द्वादश भाव में सूर्य षष्ठ भाव के स्वामी के साथ बैठा हो तो व्यक्ति कुष्ठ रोगी होता है परंतु यदि सूर्य शुभ ग्रह से युत या दृष्ट हो तो कुष्ठ रोग नही होता है।   लग्न कुंडली के यदि द्वादश भाव में सूर्य हो तो व्यक्तियों को शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है किंतु चाचा पक्ष से विवाद रहते हैं साथ ही ऐसे व्यक्तियों को नेत्रों में कोई समस्या बनी रहती है और शरीर में विशेष व्यथा रहती है मानसागरी में कहा गया है कि:-  

जडमतिरतिकामी चान्ययोषिद्विलासी, विहगगणविघाती दुःष्टचेता: कुमुर्ति:। नरपतिधनयुक्त: द्वादशस्थेदिनेशे कथकजनविरोधी जंघरोगी कृशांग:।।

  अर्थात यदि लग्न कुंडली के द्वादश भाव में सूर्य हो तो व्यक्ति प्रायः गलत निर्णय लेने वाला, पर स्त्रीगामी, पक्षी समूहों का नाश करने वाला अर्थात आकाश में उड़ने वाले पक्षियों का शिकार करने वाला, कुरुप तथा दुष्ट प्रवत्ति वाला होता है और ऐसे व्यक्तियों के जंघा में रोग रहते हैं तथा इनका देह दुर्बल होता है एवं ऐसे व्यक्ति साधारण लोगों से विरोध रखते हैं किंतु राजा से धन प्राप्त करते हैं, मंत्रेश्वर महाराज जी ने फलदीपिका में कहा है कि यदि लग्न कुंडली के द्वादश भाव में सूर्य हो तो ऐसे व्यक्ति को पिता का सुख कुछ वैमन्यस्ता के साथ प्राप्त होता है अर्थात पिता से इनके वैचारिक मतभेद रहते हैं तथा इनकी दृष्टि कुछ मंद होती है या नेत्रों में कोई रोग रहता है और व्यक्ति धनहीन व पुत्रहीन होता है।   ज्योतिर्विद पूषार्क जेतली जी के मत व अनुभव के अनुसार द्वादश भाव को व्यय भाव भी कहते हैं जिसे सभी ग्रंथकारों ने दुष्टस्थान अर्थात अशुभ भाव माना है जिस कारण से सभी ग्रंथकारों ने द्वादश भाव में सूर्य के अधिकतर अशुभ फल को ही बताया है किंतु धन के मामले में द्वादश भाव का सूर्य अच्छा फल देता है मानसागरी में कहा गया है "नरपति धनयुक्त:" अर्थात राजा से धन प्राप्त होता है तो वहीं कुछ ग्रंथकारों ने कहा है कि "शैय्या सुखहीन:" अर्थात द्वादश भाव का सूर्य शैय्या सुख की हानि करता है किंतु यह तभी संभव है जब द्वादश भाव कमजोर या पीड़ित हो अन्यथा शैय्या सुख की हानि नही होती है।   ज्योतिर्विद पूषार्क जेतली जी के अनुसार यदि लग्न कुंडली के द्वादश भाव में सूर्य यदि कर्क, वृश्चिक या मीन राशि में हो तो व्यक्ति खर्चीला, बेफिक्र, राजनीति के कारण से कारावास की सजा पाने वाला, लोकोपकारी तथा पराक्रमी और शत्रुओं पर विजय पाने वाला होता है, यदि वृषभ, कन्या या मकर राशि में हो तो व्यक्ति स्वतंत्रता प्रिय, विचारपूर्वक कार्य करने वाला, सभी संकटों को धैर्य के साथ सहन करने वाला व सत्कर्म कार्य से ख्याति प्राप्त करने वाला होता है, यदि मेष, सिंह व धनु राशि में हो तो व्यक्ति कृपण, विचारहीन, अभिमानी तथा बुरे कर्मों के कारण दंड पाने वाला होता है एवं मिथुन, तुला व कुंभ राशि में हो तो व्यक्ति खर्चीला तथा अपने वर्ग और समाज में विख्याति पाने वाला होता है।   जय श्री राम।   Astrologer:- Pooshark Jetly Astrology Sutras (Astro Walk Of Hope) Mobile:- 9919367470, 7007245896 Email:- pooshark@astrologysutras.com