नाड़ी दोष व उसका परिहार
नाड़ी दोष:-
नाड़ी दोष क्या होता है
कुंडली मिलान की प्रकिया में
अष्ट कूट का मिलान किया है वह
अष्ट कूट क्रमशः
वर्ण, वश्य, तारा, योनी, ग्रह मैत्री, गण, भकूट और नाड़ी होते हैं इन
अष्ट कूटों में प्रत्येक का अपना-अपना महत्व होता है, इस लेख में मैं
नाड़ी पर चर्चा करता हूँ क्योंकि यह एक ऐसा विषय है जिसको अधिकतर लोग नजरअंदाज कर देते हैं जब कि
नाड़ी न मिलने पर दामपत्य जीवन में अनेक प्रकार के दुष्प्रभाव देखने को मिलते हैं।
ज्योतिष ग्रंथों में
नाड़ी तीन प्रकार की बताई गई है जो कि क्रमशः
आदि नाड़ी, मध्य नाड़ी और अंत्य नाड़ी के नाम से जानी जाती है अब प्रश्न यह उठता है कि यह कैसे ज्ञात किया जाए कि किस व्यक्ति का जन्म किस नाड़ी में हुआ है अतः इस पर मैं विस्तार से वर्णन करता हूँ।
हमारे ज्योतिष शास्त्र में कुल
27 नक्षत्र होते हैं और प्रत्येक
नाड़ी में
9 नक्षत्र आते हैं
जिसका निर्धारण व्यक्ति के जन्म के समय चंद्रमा जिस नक्षत्र में स्थित हो उसके आधार पर किया जाता है जिन्हें मैं विस्तार से लिख रहा हूँ।
नाड़ियों में आने वाले नक्षत्र:-
१. आदि नाड़ी:-
अश्विनी, आद्रा, पुनर्वसु, उत्तराफाल्गुनी, हस्त, ज्येष्ठा, मूल, शतभिषा और पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र में जन्म लेने पर
आदि नाड़ी प्राप्त होती है।
२. मध्य नाड़ी:-
भरणी, मृगशिरा, पुष्य, पूर्वाफाल्गुनी, चित्रा, अनुराधा, पूर्वाषाढ़ा, घनिष्ठा और उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में जन्म लेने पर मध्य नाड़ी प्राप्त होती है।
३. अंत्य नाड़ी:-
कृतिका, रोहिणी, श्लेषा, मघा, स्वाती, विशाखा, उत्तराषाढ़ा, श्रवण और रेवती नक्षत्र में जन्म लेने पर अंत्य नाड़ी प्राप्त होती है।
नाड़ी दोष के परिहार:-
उक्त नाड़ी विचार में
आदि व अंत्य नाड़ी में से कोई एक नाड़ी ही दोनों की हो तो कुछ विद्वानों का मत है कि
रज्जूकूट अनुकूल हो, राशिकूट शुभ हो, दोनों का राशि स्वामी एक हो या दोनों राशियों में मैत्री हो तो नाड़ी दोष विशेष अनिष्टकारक नही होता है।
विशेष:-
मध्य नाड़ी एक हो तो पुरुष की मृत्यु तथा आदि अंत्य में स्त्री की मृत्यु होती है।
नक्षत्रानुसार नाड़ी दोष परिहार:-
नाड़ी दोष परिहार
१.
विशाखा, अनुराधा, घनिष्ठा, रेवती, हस्त, स्वाती, आद्रा, पूर्वाभाद्रपद इन
8 नक्षत्रों में से किसी भी नक्षत्र में वर, कन्या या दोनों में से एक का ही जन्म हो तो विवाह शुभ होता है अर्थात
नाड़ी दोष का परिहार हो जाता है।
२.
उत्तराभाद्रपद, रेवती, रोहिणी, विशाखा, आद्रा, श्रवण, पुष्य और मघा इन
8 नक्षत्रों में भी वर व कन्या का जन्म नक्षत्र पड़े तो
नाड़ी दोष शांत हो जाता है,
भरणी, मृगशिरा, शतभिषा, हस्त, पूर्वाषाढ़ा व श्लेषा इन नक्षत्रों में भी
नाड़ी दोष नही रहता है।
३. वर व कन्या की एक राशि हो लेकिन जन्म नक्षत्र अलग हो या जन्म नक्षत्र एक हों व राशियां भिन्न-भिन्न हो तो नाड़ी दोष नही होता है, एक नक्षत्र में भी चरण भेद होने पर अत्यावश्यकता में विवाह किया जा सकता है।
४.
कृतिका, रोहिणी, घनिष्ठा, शतभिषा, पुष्य, श्लेषा ये नक्षत्र एक ही राशि में पड़ते हैं, तब भी इन जोड़े नक्षत्रों में यदि वर व कन्या के नक्षत्र हो तो इन्हें छोड़ना चाहिए।
५.
रोहिणी, आद्रा, मघा, विशाखा, पुष्य, श्रवण, रेवती, उत्तराभाद्रपद में से किसी एक नक्षत्र में ही दोनो का जन्म हो तब भी नाड़ी दोष नही रहता, नक्षत्र चरण भेद आवश्यक है।
नक्षत्रेक्ये पादभेदे शुभम् स्यात।।
पराशरः प्राह नवांशभेदादेकर्क्षराश्योरपि सौमनस्यम्।।
एकक्षै चैकपादे च विवाह: प्राणहानिद:।।
दम्पत्योरेकपादे तु वर्षान्ते मरणं ध्रुवम्।।
अर्थात:-
चरण व नक्षत्र दोनों एक होने का फल मृत्यु है, नाड़ी कूट सर्व शिरोमणि प्रधान है, इसके गुण 8 माने जाते हैं।
जय श्री राम।
Astrologer:- Pooshark Jetly
Astrology Sutras (Astro Walk Of Hope)
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