योगफल ज्ञात करने की विधि
योगफल:-
कम से कम दो ग्रहों के मेल से बनने वाले योग को
योगफल बनता है किंतु प्रश्न यह उठता है कि उन दोनों ग्रहों में से कौन सा ग्रह अधिक बलवान है और किस ग्रह की दशा में उस योग का फल प्राप्त होगा इसके लिए मैं बहुत ही सरल विधि बता रहा हूँ जिससे आप यह ज्ञात कर सकते हैं कि उस योग का फल कब प्राप्त होगा:-
सर्वप्रथम ग्रहों की स्थिति के अनुसार उनके बल की स्थिति को ज्ञात करना चाहिए उसकी विधि मैं नीचे विस्तार से बता रहा हूँ:-
शुभ स्थिति में ग्रह होने पर इस प्रकार बिंदु दिए जाते हैं:-
१.
उच्च ग्रह को
5 बिंदु प्राप्त होते हैं।
२.
स्वराशि स्थित ग्रहों को
4 बिंदु प्राप्त होते हैं।
३.
मित्र राशि में स्थित ग्रह को
3 बिंदु प्राप्त होते हैं।
४.
मूलत्रिकोण राशि में स्थित ग्रह को
2 बिंदु प्राप्त होते हैं।
५.
उच्चाभिलाषी ग्रह को
1 बिंदु प्राप्त होते हैं।
ऊपर ग्रह की स्थिति और उससे संबंधित अंक दिए गए हैं उदाहरण के लिए यदि योग से संबंधित ग्रह उच्च राशि का हो तो उसके लिए
5 बिंदु निर्धारित समझें ठीक इसी प्रकार स्वराशि होने पर
4 बिंदु, मित्र राशि होने पर
3 बिंदु, मूलत्रिकोण राशि होने पर
2 बिंदु और उच्चाभिलाषी होने पर
1 बिंदु दिए जाने चाहिए।
अशुभ स्थिति में ग्रह होने पर इस प्रकार अंक दिए जाते हैं:-
१.
नीच ग्रह को
5 बिंदु प्राप्त होते हैं।
२.
पाप ग्रह को
4 बिंदु प्राप्त होते हैं।
३.
पाप ग्रह के राशि में स्थित हो तो
3 बिंदु प्राप्त होते हैं।
४.
पाप ग्रह से दृष्ट होने पर
2 बिंदु प्राप्त होते हैं।
५.
नीचाभिलाषी ग्रह को
1 बिंदु प्राप्त होते हैं।
जो ग्रह नीच राशि में स्थित हो उसे
5 बिंदु, पाप ग्रह होने पर
4 बिंदु, पाप ग्रह के घर में बैठा हो तो
3 बिंदु, पाप ग्रह से देखे जाते हों तो
2 बिंदु तथा नीचाभिलाषी हो तो उसे
1 बिंदु दिए जाते हैं।
योगफल निकालने की विधि:-

जिन ग्रहों के मेल से योग बन रहा हो उनमें से जिस ग्रह ने अधिक अंक प्राप्त किए हैं, उसकी महादशा में दूसरे ग्रह की अंतर्दशा में वह योगफल फलित होता है, यदि शुभ ग्रह को अधिक बिंदु मिलते हैं तो फल शुभ तथा पाप ग्रह को अधिक बिंदु मिलने पर अशुभ फल की प्राप्ति होती है।
उदाहरण कुंडली:-
उदाहरण कुंडली
यह मिथुन लग्न की कुंडली है जिसके दूसरे भाव में गुरु उच्च राशि में स्थित है व चंद्र से युति कर के
"गजकेसरी योग " का निर्माण कर रहे हैं, अब यह देखना है कि बृहस्पति और चंद्र में से कौन सा ग्रह अधिक बलवान है इसके लिए उपर्युक्त विधि का प्रयोग करना चाहिए:-
१. बृहस्पति कर्क राशि में स्थित हैं जो कि उनकी
उच्च राशि है अर्थात यहाँ गुरु को
5 बिंदु प्राप्त होंगे।
२. बृहस्पति चंद्र का मित्र है और चौथी राशि कर्क में है जो चंद्र का घर है अर्थात गुरु अपने
मित्र की राशि में बैठा है यो यहाँ गुरु को
3 बिंदु प्राप्त होंगे।
कुल योग= 5 + 3 = 8
अर्थात बृहस्पति को 8 अंक प्राप्त होंगे।
अब चन्द्रमा का बल भी इसी प्रकार निकालना चाहिए:-
१. इस कुंडली में चंद्रमा
स्वराशि स्थित होकर
4 बिंदु प्राप्त कर रहे हैं।
इसके अतिरिक्त अन्य बिंदु चन्द्र को प्राप्त नही हो रहे हैं।
स्पष्टत:
गुरु को 8 बिंदु तथा चंद्र को 4 बिंदु मिले हैं अतः गुरु बलवान है, नियमानुसार गुरु की महादशा में चन्द्र की अंतर्दशा आने पर जातक/जातिका को
"गजकेसरी योग" का फल प्राप्त होगा।
जय श्री राम।
Astrologer:- Pooshark Jetly
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